इन दिनों एनडीटीवी सुर्ख़ियों में है ।साथ में पत्रकारिता के उन महानायकों को भी याद किया जा रहा है,जिन्होंने ज़िंदगी भर सरोकारों और सिद्धांतों की पत्रकारिता की । राजेंद्र माथुर और एस पी सिंह ऐसे दो नाम हैं ।मैं उनमें से एक हूं ,जिन्होंने राजेंद्र माथुर और एसपी सिंह के साथ वर्षों तक काम किया और प्रिंट तथा टीवी पत्रकारिता का स्वर्णकाल देखा है और दुर्भाग्य यह कि आज पत्रकारिता की यह दुर्दशा देखनी पड़ रही है ।
सोलह सत्रह साल तक मुझे उनके बेहद निकट रहने का अवसर मिला। वे रविवार में थे तो मैं उनकी टीम का हिस्सा था।वे नवभारत टाइम्स गए तो मैं उनकी टीम का हिस्सा था । देव फीचर्स में थे तो मैं उनकी टीम का हिस्सा था। वे आज तक में थे तो मैं उनकी टीम का हिस्सा था।इसके बाद वे वहां चले गए,जहां की टीम का हिस्सा बनने की आज़ादी मुझे नहीं थी।काश ! ऐसा होता।पत्रकारिता की यह दुर्गति तो नहीं देखनी पड़ती । किसी देश की पत्रकारिता को ऐसे रीढ़वान और निर्भीक संपादक बार बार नहीं मिलते ।
दुर्भाग्य है कि पत्रकारिता के पाठ्यक्रमों में वे आज तक शामिल नहीं हो पाए हैं।राजेंद्र माथुर और एसपी की जोड़ी ने प्रिंट मीडिया के इतिहास में सुनहरे पन्ने जोड़े हैं । दोनों के रहते नवभारत टाइम्स के लखनऊ, जयपुर,पटना से संस्करण निकले । जब यह जोड़ी टूट गई तो आगे पीछे ये संस्करण भी बंद हो गए ।मुंबई नवभारत टाइम्स का काया पलट करने में एस पी का ही योगदान था ।
–लेखक देश के ख्यात वरिष्ठ पत्रकार हैं।