उदयपुरा रायसेन– समीपस्थ नर्मदा तट अनघोरा में ऋषिकेश से पधारे स्वामी सदाशिव नित्यानंद गिरी जी महाराज के दिव्य मुखारविंद से चल रहे श्री शिव महापुराण कथा के तृतीय दिवस पर स्वामी नित्यानंद गिरि जी महाराज ने कहा कि जीवत्व से शिवत्व की ओर जाना ही शिव उपासना है । जीप का जो स्वभाव है वह राग ,द्वेष अविध्या, अहंकार, काम क्रोध लोभ इन विकारों से ऊपर उठकर शिवत्व की ओर बढ़ना ही ही शिव उपासना है । जीप का मूल स्वरूप शिव से अभिन्न है । लेकिन वह अहंकार से राग, द्वेष से अविध्या से कुसंग से जीव भाव में लिप्त हो गया है । इन विकारों को त्याग कर शिव भक्ति में लीन होना ही वास्तविक शिव उपासना है ।
स्वामी जी ने कथा में नारद मोह का प्रसंग बताते हुए कहा कीजिए अहंकार के कारण अपने को श्रेष्ठ मानता है और अहंकार ही उसके पतन का कारण है । अहंकार के कारण मनोज ईश्वर के सामने अपने गुरुओं के सामने बड़ों के सामने अपने आप को श्रेष्ठ मानने लगता है । नारद जी ने भगवान शिव की बात नहीं मानी उनको भी काम को जीतने का अहंकार हो गया था । साधक में सद्गुण भगवान की कृपा से आता है और साधक भी अहंकार के कारण उसको अपना मान लेता है और उसको अहंकार हो जाता है । इसलिए सद्गुणों को परमात्मा का माने अपना ना माने , अपना मानने से उसमें हंकार आता है और प्रभु का मानने से उसमें विनम्रता आती है । नारद जी ने शिवजी की बात नहीं मानी काम को जीता ऐसा अहंकार हो गया , और भगवान विष्णु के पास जाकर उन्होंने अपने गुणों का बखान किया । अपने गुणों का स्वयं बखान करना दूसरों की बात ना मानना अपने आप को श्रेष्ठ समझना ही अहंकारी का लक्षण है । नारद जी के अहंकार को देखकर भगवान ने माया के द्वारा उनको काम मोहित कराया , और उनको उनके वास्तविक स्वरूप का दर्शन कराया , तब नारद जी का अहंकार गिरा है । स्वामी जी ने आगे बताया कि भगवान शिव सरल है और सरल लोगों को ही प्राप्त होते हैं । जो माता पिता की सेवा करता है गौ सेवक है जिसके अंदर सरलता है वही शिव को पा सकता है । जो किसी का अपमान नहीं करता किसी का तिरस्कार नहीं करता वही शिव की कृपा पाता है । शिवजी करुणा कार है सब पर दया करने वाला शिव को बहुत प्रिय है । इसी भाव से शिव उपासना होती है । 7 दिसंबर तक चलने वाले शिव महापुराण में आयोजक समस्त ग्राम वासियों ने सभी क्षेत्र वासियों से अधिक से अधिक संख्या में पधार कर शिव कथा सुनने का आग्रह किया ।