मुकेश साहू दीवानगंज रायसेन
देहरी गांव में चल रही राम कथा के पांचवे दिन कथावाचक अंजलि दीदी ने कहा कि राम सीता का विवाह पंचमी एक उत्सव के तौर पर मनाया जाता है, यह दिन बहुत खास है क्यूंकि इस दिन भगवान राम और सीता का विवाह हुआ था क्यूंकि सीता मैया राजा जनक की पुत्री थी, जो कि मिथिला नरेश थे पौराणिक युग का सबसे अनूठा स्वयंबर मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पंचमी के दिन हुआ था. यह बहुत बड़ा स्वयंबर हैं जिसका वर्णन पुराणों में मिलता हैं.
राम एवम सीता भगवान विष्णु एवम लक्ष्मी माता के रूप थे, जिन्होंने पृथ्वी लोक पर राजा दशरथ के पुत्र एवम राजा जनक की पुत्री के रूप में जन्म लिया था. राजा जनक हल जोत रहे थे, तब उन्हें एक नन्ही सी बच्ची मिली थी, जिसे उन्होंने सीता नाम दिया था, यही सीता मैया जनक पुत्री के नाम से जानी जाती हैं.
माता सीता ने एक बार मंदिर में रखे भगवान शिव के धनुष को उठा लिया था, जिसे भगवान परशुराम के अलावा किसी ने नहीं उठाया था, तब ही राजा जनक ने निर्णय लिया था, कि वे अपनी पुत्री के योग्य उसी मनुष्य को समझेंगे, जो भगवान विष्णु के इस धनुष को उठाये और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाये.
स्वयंबर का दिन तय किया गया चारों और संदेश भेज दिया गया कई बड़े बड़े महारथी इस स्वयम्बर का हिस्सा बने जिसमें महर्षि वशिष्ठ के साथ भगवान राम और लक्षमण भी दर्शक के रूप में शामिल थे. कई राजाओं ने प्रयास किया लेकिन कोई भी उस धनुष को हिला ना सका प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर की बात हैं. इस प्रदर्शन से दुखी होकर राजा जनक ने करुण शब्दों में कहा कि क्या कोई राजा मेरी पुत्री के योग्य नहीं हैं. उनकी इस मनोदशा को देख महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम से प्रतियोगिता में हिस्सा लेने कहा. गुरु की आज्ञा का पालन करते हुये भगवान राम ने शिव धनुष को उठाया और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने लगे, लेकिन वह धनुष टूट गया और इस प्रकार स्वयम्बर को जीत उन्होंने माता सीता से विवाह किया. माता प्रसन्न मन से भगवान राम के गले में वरमाला डाली.
इस विवाह से धरती,पाताल एवम स्वर्ग लोक में खुशियों की लहर दोड़ पड़ी. आसमान से फूलों की बौछार की गई.पूरा ब्रह्माण्ड गूंज उठा चारों तरफ शंख नाद होने लगा.