मुकेश साहू दीवानगंज रायसेन
जैविक खाद ब सघन खेती के इस युग में भूमि की उर्वराशक्ति बनाए रखने के लिए प्राकृतिक खादों का प्रयोग बढ़ रहा है। किसान लगातार रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग करते आ रहे हैं। रसायनिक उर्वरकों ने न सिर्फ मृदा एवं जल प्रदूषण को बढ़ावा दिया। इसके साथ भूमि की उपजाऊ क्षमता भी कम हुई है। इन उर्वरकों के प्रयोग का मृदा के गठन, जलधारण रोकने की क्षमता, ओर्गेनिक कार्बन की मात्रा,पीएच मान, फसलों की गुणवत्ता में कमी, मानव स्वास्थ्य व पौष्टिक चारे के अभाव में पशुओं में बांझपन आदि बुरे प्रभाव पड़े हैं। इन दुष्प्रभावों को कम करने अथवा रोकने के लिए सेमरा के किसान जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट,वर्मीकम्पोस्ट व हरी खाद का प्रयोग कर रहे हैं। ग्राम सेमरा में इस प्रकार के खाद निर्माण करने का चलन चालू हो गया है।
ग्राम सेमरा के निवासी रवि शंकर, अमर सिंह ,मल्लू लाल ,मुकेश लोधी आदि किसान इस साल से नए खाद का उपयोग करने जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले कचरे को गोबर के घोल में मिला कर 15 दिन तक सड़ाया जाता है। इसके बाद वर्मी टैंक में 6 इंच की परत बना देते हैं। इस गोबर की परत के ऊपर 500-1000 केचुएँ प्रति वर्ग मी. के हिसाब से डाले जाते हैं। इसके लिए इसीनिया फोएटिडा, यूड्रिजस यूजिनी, फेरीटिमा एलोंगटा आदि केंचुए की उपयुक्त प्रजातियाँ का प्रयोग किया जाता है। टैंक के अंदर तापमान 25-30 सेल्सियस व 30-35 प्रतिशत नमी रखी जाती है। इसके साथ-साथ शेड पर अंधेरा बनाए रखें क्योंकि केंचुए अंधेरे में ज्यादा रहते हैं। 25-30 दिन बाद ढेर को हाथों या लोहे के पंजे से धीरे-धीरे पलटते हैं। लगभग 60-75 दिन में वर्मीकम्पोस्ट तैयार हो जाती है। टैंक में विषैले पौधों जैसे आक, ताजा गोबर व कठोर टहनियाँ नहीं डालें। इसके साथ-साथ गड्डों को चींटियों, कीड़े-मकोड़ों, कौओं तथा पक्षियों आदि से सुरक्षित रख रहें हैं। 8 से 12 प्रतिशत नमी रख कर इस खाद का एक साल तक भंडारण कर सकते हैं। हम पहली बार इस तरह का खाद तैयार कर रहे हैं।