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आचार्य रजनीश (ओशो) का जन्म स्थली में मनाया गया 94 जन्म उत्सव. देश विदेश से आए अनुयायी

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तारकेश्वर शर्मा बम्होरी रायसेन

11दिसंबर को कुचवाडा ओर जबलपुर में आचार्य रजनीश के देवताल आश्रम पहुंचे सैकड़ों अनुयायी:’ओशो’ का जन्मदिन आज, देश-विदेश से मौल श्री वृक्ष के में दर्शन करने आते हैं ।वही आचार्य रजनीश के 94 जन्म उत्सव पर की जन्मस्थली ग्राम कुचवाडा में सुबह से ही देर शाम तक ओशो का जन्म उत्सव बड़ी धूमधाम और सादगी के साथ मनाया गया।


सर्वप्रथम आचार्य रजनीश ओशो के चित्र पर फूल माला अर्पित करके जन्म उत्सव का शुभारंभ किया गया, वही उत्सव स्पेशल बनाने के लिए गायक कलाकारों द्वारा ओशो के जीवन पर प्रकाश भजन कार्यक्रम के माध्यम से दिया गया वहीं देश विदेश से आए ओशो के चाहने वालों ने उनके जीवन पर विचार रखें।

बता दे11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के रायसेन जिला के ग्राम कुचवाड़ा में हुआ था आश्चर्य रजनीश का जन्म। बचपन का नाम चंद्रमोहन जैन था। बाद में वह रजनीश के नाम से जाने गए। रजनीश को बाद में ओशो के नाम से प्रसिद्धि मिली।

ओशो ने अपनी पढ़ाई जबलपुर से पूरी की थी। जबलपुर के रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी में बतौर प्रोफेसर भी उन्होंने कई दिनों तक पढ़ाया था। महा कौशल कॉलेज में ओशो दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर थे उन्होंने 1957 से 1970 तक कॉलेज में अध्यापन कार्य किया था। रजनीश को बचपन में ही दर्शन में रुचि पैदा हो गई थी। इसका जिक्र उन्होंने अपनी किताब ”ग्लिम्पसेस ऑफ ए गोल्डन चाइल्ड हुड” में भी किया है। प्रोफेसर होने के साथ साथ ओशो ने अलग-अलग धर्म और विचारधारा पर देश भर में प्रवचन देना शुरू किया। ध्यान शिविर भी आयोजित किए। उन्होंने विश्वविद्यालय की नौकरी छोड़ ‘नव संन्यास आंदोलन’ की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने खुद को ओशो कहना शुरू कर दिया।

आचार्य रजनीश(ओशो) को जबलपुर से बहुत प्रेम था। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका पहुंचकर विश्व प्रसिद्ध होने के बाद भी वह जबलपुर को कभी नहीं भूले। कहा जाता है कि उनके एक अनुयायी ने जब उनसे पूछा कि धरती पर सबसे पसंदीदा जगह आपकी कौन सी है। तो उनका कहना था जबलपुर वो स्थान है जो मुझे सबसे सुंदर लगता है। यही वजह है कि ओशो के जन्मदिन पर कई सालों से उनके अनुयायी जबलपुर आते रहे हैं। साथ ही उनके जन्मस्थली कुचवाड़ा भी आते हैं बताया जाता है कि उन्होंने कहा था, ”जबलपुर मेरा पर्वत स्थल है, जहां मैं सर्वाधिक आनंदित हुआ.”।

जबलपुर के ही भंवर ताल पार्क में मौल श्री वृक्ष है। कहा जाता है कि मार्च 1953 को भंवर ताल पार्क के मौलश्री वृक्ष के नीचे आचार्य रजनीश को बोध तत्व की उपलब्धि प्राप्त हुई थी। आचार्य रजनीश की साधना शिला देवताल पार्क में है। जबलपुर के महा कौशल कॉलेज की लाइब्रेरी में आज भी ओशो से जुड़े लिटरेचर, मैगजीन और उनके जीवनकाल से जुड़ी तस्वीरों का कलेक्शन मौजूद है।
वही आचार्य रजनीश ओशो का जन्मस्थली कुचवाड़ा में नाना नानी के यहां बचपन बीता।


इन्होंने दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की थी और युवावस्था से ही ध्यान और साधना में लग गए थे। ओशो के विचारों ने लाखों लोगों को प्रभावित किया है।

आज भी लोग उनकी दी गई शिक्षा को याद करते हैं और जीवन की मुश्किलों के बीच मार्ग दर्शन पाते हैं । इनके विचार जीवन के अलग-अलग पहलुओं को छूते हैं, जैसे कि प्रेम, खुशी, आध्यात्मिकता, और समाज। उनके विचारों को अगर व्यक्ति ध्यान से पढ़े, तो उसे जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण मिल सकता है।

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