– विश्व पर्यटन दिवस पर खास
– पर्यटन की द्रष्टि से शिवपुरी एतिहासिक, पुरातात्विक, प्राकृतिक धरोहरों से समृद्धशाली शहर है
रंजीत गुप्ता शिवपुरी
मध्यप्रदेश का एक अत्यंत प्राचीन शहर है जिसे पर्यटन ग्राम के नाम से जाना जाता है शिवपुरी पर्यटकों के बीच में बेहद पवित्र और प्रसिद्ध शहर है। शिवपुरी मध्य प्रदेश के उत्तरी भाग में एक ऐतिहासिक शहर है। यह घने जंगल से घिरा हुआ है और शिवपुरी में समृद्ध वनस्पतियों और जीवों का घर है।
पवा जल प्रपात
शिवपुरी से 30 किमी दूर पोहरी क्षेत्र में प्रसिद्ध पवा धार्मिक स्थल पर जलप्रपात शुरू हो गया हैबीते कुछ दिनों से हो रही अच्छी बारिश के बाद पवा जलप्रपात पर ऊंचाई से पानी गिर रहा है। जलप्रपात पर बड़ी संख्या में पर्यटक यहां का प्राकृतिक सौंदर्य देखने के लिए पहुंच रहे है।
पवा जलप्रपात जंगल के बीच स्थित है और यह प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। इस जलप्रपात पर ऊंचाई से पानी गिरने पर यहां प्रकृति का अनोखा नजारा देखने को मिलता है। पवाधाम धार्मिक आस्था का केंद्र भी है यहां पर मुनिश्री संत रामदास महाराज का आश्रम भी है।
पवा स्थित जलप्रपात के नीचे कई प्राकृतिक गुफाएं भी हैं। यहां पर प्राचीन काल में कई साधु संतों ने साधना की है। इसके अलावा ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल के दौरान पांडवों ने भी यहां पर अपने अज्ञातवास के दिन गुजारे है।झरने के पास सिद्ध बाबा का मंदिर भी है। इस मंदिर में सैलानी दर्शन भी करते हैं।
यहां स्थित गुफाओं में हजारों साल पहले संत तपस्या करते थे। मंदिर के नीचे स्थित गुफाओं में पांडुलिपि बनी हुई है। यहां स्थित भीम शिला पर मंदिर बना हुआ है। झरने के मनोहारी नजारे को देखने पर्यटकों का हुजूम उमड़ता है।
भूरा खो
शिवपुरी शहर से 10 किमी दूर स्थित प्राकृतिक झरना भूरा खो एक छोटा लेकिन सुंदर झरना है। भूरा खो में 25 फीट का आकर्षक झरना है जिसका पानी नीचे कुंड में गिरता है। यह माधव सागर झील के पास स्थित है। भूरा खो आगंतुकों के लिए एक मनोरंजन केंद्र है। भूरा खो पर भगवान शिव की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। यह झरना एक छोटी सी उचाई से गिरता है और पास ही नदी में विलीन हो जाता है। भूरा खो शिवपुरी के तीन प्रसिद्ध झरनों में से एक है। शिवपुरी में भूरा खो के अलावा सुल्तानगढ़ और पवा का झरना भी है।
सुल्तानगढ़ जलप्रपात
सुलतानगढ़ जलप्रपात शिवपुरी से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक प्रसिद्ध और मनमोहक पर्यटन स्थल है। सुल्तान गढ़ जलप्रपात चट्टानी इलाके के बीच में स्थित एक प्राकृतिक झरना हैं। पार्वती नदी इस झरने को खूबसूरती प्रदान करती है। हरे भरे जंगलों से घिरा हुआ यह क्षेत्र सुल्तान गढ़ जलप्रपात को भव्यता प्रदान करता है।
सुल्तान गढ़ जलप्रपात के आगंतुक पर्यटकों के अनुसार यह जलप्रपात बेहद ही खूबसूरत और सुखदायक है। सुल्तान गढ़ जलप्रपात और इसके आसपास का क्षेत्र एक प्रकृति प्रेमी की आँखों के लिए एक दावत स्वरुप है। यहाँ पर्यटकों को सूर्यउदय एवं सूर्यास्त के समय ज्वलंत रंगों के साथ क्षितिज में सूर्य को देखना बेहद खूबसूरत लगेगा।
तात्या टोपे स्मारक
भारत की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और सन् 1857 की प्रथम क्रांति के योद्धा वीर शहीद तात्या टोपे के समाधि स्थल शिवपुरी में स्थापित है
सन 1857 की क्रांति के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वीर शहीद तात्या टोपे ने अपने गुरिल्ला युद्ध से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। सन 1857 की क्रांति के दौरान झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ तात्या टोपे ने अंग्रेजों से मुकाबला किया, लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें धोखे से पकड़कर शिवपुरी में फांसी दे दी। शिवपुरी में फांसी देने से पहले उन पर कोठी नंबर 17 में मुकदमा चलाया गया। इस मुकदमे में एक तरफा फैसला देते हुए अंग्रेजों ने उन्हें 18 अप्रैल 1859 को शिवपुरी में फांसी दी। शिवपुरी में फांसी दिए जाने के बाद उनका स्मारक स्थल है। यहां पर हर वर्ष 18 अप्रैल को शहीद मेला आयोजित होता है। इसमें तीन दिनों तक विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भारत की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और सन् 1857 की प्रथम क्रांति के योद्धा वीर शहीद तात्या टोपे के समाधि स्थल शिवपुरी में स्थापित है यहां पर हर वर्ष 18 अप्रैल को शहीद मेला आयोजित होता है। इसमें तीन दिनों तक विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
सुरवाया की गढ़ी
सुरवाया की गढ़ी, भारत के इतिहास को कई मायनों में देदीप्यमान करती है। शिवपुरी से करीब 20 किमी. की दूरी पर झांसी रोड़ स्थित है जहां सुरवाया नमक एक छोटा सा कस्बा है, यहीं स्थित है सुरवाया की गढ़ी के। इस गढ़ी की ख़ास बात यह है कि यह विशालकाय प्रस्तर खण्डों से बनी है, जिन्हें केवल एक के ऊपर एक रखकर यह गढ़ी निर्मित की गई है 7 पत्थरों को जोडऩे के लिए कहीं भी चूने या अन्य किसी मसाले का उपयोग नहीं किया गया है 7 इस छोटे से शहर में एक शांत झील, दुनिया के पुराने आकर्षण की मानो आज भी साक्षी दे रही है। यहां एक प्रसिद्ध मंदिर स्थित है जो भगवान शिव को समर्पित है, यह मंदिर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इस मंदिर की कला और स्थापत्य बेहद सुंदर है 7 मंदिर काफी प्राचीन है लेकिन आज भी इसकी सुन्दरता देखते ही बनती है। गढ़ी में एक सभागार है जो पूरी तरह से पत्थरों से ही निर्मित है। यह प्राचीन मठ है, इसे सरस्वती मंदिर माना जाता है तथा इसे एक बहुत बड़ा शिक्षा केंद्र माना जाता रहा है। किले की तरह विशाल प्राचीरों से घिरा प्रमुख मठ है, जिसमें रहने व अध्ययन के लिए बड़े-बड़े शिलाखंडों से निर्मित कक्ष हैं।
नरवर का किला
शिवपुरी जिले में नरवर का प्राचीन किला काली सिंध के पूर्व में है जो शिवपुरी से करीब 41 किमी की दूरी पर है। नरवर का किला मध्ययुगीन समय का है। महाभारत में वर्णित यह नगर राजा नल की राजधानी बताया गया है।12वीं शताब्दी तक इस नगर को नलपुरकहा जाता था। नरवर का किला बुंदेलखंड में पहले एवं मध्य भारत के ग्वालियर किले के बाद दूसरे नंबर का है। नरवर दुर्ग नाग राजाओं की राजधानी था। समुद्र गुप्त ने नाग राजाओं के वैभव को नष्ट करने हेतु उन पर आक्रमण किया था तथा उन्हें श्रीहीन कर यत्र तत्र विखंडित कर दिया था, जिसका उल्लेख इलाहाबाद स्तंभ में है।
छत्री
शिवपुरी सुशोभित, जटिल रूप से अलंकृत संगमरमर छत्रियों के लिए प्रसिद्ध है जो सिंधिया शासकों द्वारा निर्मित है। छत्रियाँ एक विस्तृत मुगल गार्डन में स्थापित हैं और सिंधिया शासकों को समर्पित हैं। इनमें से एक छत्री माधव राव सिंधिया की है और दूसरा उनकी मां महारानी सख्या राजे सिंधिया की। छत्रियां मुगल मंडप के साथ हिंदू और इस्लामी वास्तुकला शैलियों का शानदार संलयन हैं।छतरी शिवपुरी में प्रसिद्ध स्मारकों में से एक है। माधवराव सिंधिया प्रथम ने अपनी स्वर्गवासी मां की स्मृति में यह छत्री शिवपुरी में बनवाई। संख्या राजे सिंधिया की स्मृति में समाधि स्थल के ठीक सामने तालाब और उसके बाद सामने ही माधव राव सिंधिया का समाधि स्थल बना है। इनके बुर्ज मुग़ल और राजपूत की मिश्रित शैली में निर्मित हैं।
भदैयाकुंड
शिवपुरी स्थित भदैया कुंड एक प्राकृतिक झरने के साथ एक सुंदर क्षेत्र है। पिकनिक क्षेत्र के रूप में भदैयाकुंड अलग है। भदैया कुंड का पानी चिकित्सकीय शक्तियों के लिए माना जाता है। भदैयाकुंड में वोट क्लब स्थित है। बरसात के मौसम के दौरान भदैयाकुंड का झरना पूर्ण प्रवाह में चलता है। इस झरने के नीचे और कुंड के पास एक गौ मुख है जहां से पानी निकलता है। शिवजी का मंदिर आस्था का केंद्र है, आसपास से काफी लोग यहां पहुंचते हैं।
माधव नेशनल पार्क
शिवपुरी में आगरा -बम्बई और झाँसी -शिवपुरी के मध्य माधव नेशनल पार्क स्थित है। इसका क्षेत्रफल 157.58 वर्ग किलोमीटर है। पार्क पूरे वर्ष सैलानियों के लिए खुला रहता है। चिंकारा, भारतीय चिकारे और चीतल की बड़ी संख्या में हैं। नील गाय, सांभर, चौसिंगा , कृष्णमृग, आलस भालू, तेंदुए और आम लंगूर विशाल पार्क के अन्य निवासी हैं।
सेसई स्थित 9-10वीं शताब्दी का सूर्य मंदिर
जिला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर एबी रोड पर ग्राम सेसई में श्री शांतिनाथ नौगजा अतिशय क्षेत्र के पास स्थित 9-10वीं शताब्दी के मध्य प्रतिहार शैली में निर्मित हुआ वास्तुकला की अद्भुत नजीर सूर्यमंदिर। इस मंदिर के मुख्य द्वार के ललाट पर सूर्य की प्रतिमा अंकित है, जिसमें सूर्य सप्तअश्व की बाग पकड़े हुए दिखाए गए हैं। यही नहीं उनके पैरों में उपानह भी है और इसी आधार पर इसे सूर्य मंदिर माना गया है, जिसका उल्लेख यहां लगे बोर्ड पर भी अंकित किया गया है।
बाणगंगा
बाणगंगा, शिवपुरी में स्थित एक प्राचीन मंदिर है। बाणगंगा, हिन्दूओं के लिए एक धार्मिक और पवित्र भूमि है। बाणगंगा एक प्राचीन मंदिर है और माना जाता है कि पूर्वकाल में यहां 52 पवित्र कुंड बिद्यमान थे 7 माना जाता है कि शिवपुरी में जहां महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास के समय अजुज़्न ने अपने तीर से जल की धारा निकाली थी, आज वही स्थान बाणगंगा नाम से जाना जाता है यहां के पानी से नहाने से सारे चर्मरोग दूर होते हैं। मकर संक्रांति के दिन सुबह-सुबह नहाने का विशेष महत्व है इसी क्रम में बाणगंगा पर सभी श्रद्धालु नहाते है और वहां पर एक मेला भी लगता है जो कि सदियों से चला आ रहा है।
चुड़ैल छज्जा के 10 हजार साल पुराने शैल चित्र
ये शैल चित्र शिवपुरी से 32 km दूर माधव नेशनल पार्क के अन्दर टुंडा भरका जल प्रपात के समीप है । शिवपुरी की भूमि पर प्रागेतिहसिक काल के मनुष्यों के स्मृति चिन्ह शैलचित्र के रूप में आज भी सुरक्षित है।
सुप्रसिद्ध पुरातत्व विशेषज्ञ श्री रविन्द्र पंड्या के शब्दों- में चुडैल चट्टानो की ये मौन चित्रशालाये तात्कालिक आदिमानव की संघर्षमय कहानी कह रही है । चित्रों के माध्यम से किसी भी बात को समझाने के विचार का उदाहरण शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क के उत्तरी भाग में करीब 10 हजार साल पुराने शैल चित्रों में दिखाई देता है। इसमें जनजातियो की दिनचर्या को दर्शाते शैल चित्र मौजूद हैं।