नई दिल्ली। राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के मामले पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में देशद्रोह कानून पर रोक लगा दी और फैसला सुनाया कि इस देशद्रोह कानून के तहत कोई नई प्राथमिकी तब तक दर्ज नहीं की जाए, जब तक कि केंद्र इस ब्रिटिश-युग के कानून के प्रावधानों की फिर से जांच नहीं करता, जिसे भारत में चुनौती दी गई है.
इस दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जब तक केंद्र ब्रिटिश काल के कानून की फिर से जांच नहीं करता तब तक देशद्रोह कानून के प्रावधान पर रोक लगाना सही दृष्टिकोण नहीं हो सकता है. इसके साथ ही केंद्र ने यह भी बताया कि एसपी रैंक से ऊपर के अधिकारी को ही राजद्रोह संबंधी मामले दर्ज करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में दी दलील: केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी. उन्होंने कोर्ट को बताया कि हमने राज्य सरकारों को जारी किए जाने वाले निर्देश का मसौदा तैयार किया है और उसके मुताबिक राज्य सरकारों को स्पष्ट निर्देश होगा कि पुलिस अधीक्षक या उससे ऊपर रैंक के अधिकारी की मंजूरी के बिना राजद्रोह संबंधी धाराओं में एफआईआर दर्ज नहीं की जाएगी.
राजद्रोह कानून पर रोक न लगाएं: तुषार मेहता: सुप्रीम कोर्ट में दलील देते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपील किया कि फिलहाल राजद्रोह कानून पर रोक न लगाई जाए.
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