Let’s travel together.
Ad

उत्तर भारत में लू के नए दौर का आगाज… क्या है इसका कर्क रेखा से कनेक्शन?

0 22

उत्तर भारत में रविवार से लू का एक नया दौर शुरू हो सकता है. मौसम विभाग ने बताया है कि अगले कुछ दिन उत्तर-पश्चिम भारत को भीषण गर्मी का सामना करना पड़ेगा. बीते 24 घंटे के दौरान मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार के कुछ क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 43-46 डिग्री के बीच दर्ज किया गया. अगले दो दिन इसमें 2-4 डिग्री सेल्सियस बढ़त की संभावना जताई गई है. आपके मन में कभी न कभी यह सवाल उठा होगा कि गर्मी के हर सीजन में क्यों इन्हीं क्षेत्रों में तापमान के नए रिकाॅर्ड बनते हैं. तो इसकी एक वजह है इनका कर्क रेखा (Tropic of Cancer) के आसपास होना.

ज्योग्राफी में अपने पढ़ा होगा कि पृथ्वी के बीच में खींची गई एक काल्पनिक रेखा जो धरती को दो बराबर भागों में बांटती है, वो इक्वेटर कहलाती है. इसी लाइन से 23.5° नाॅर्थ में पड़ती है कर्क रेखा यानी ट्रॉपिक ऑफ कैंसर. इसी तरह इक्वेटर के नीचे 23.5° साउथ में ट्रॉपिक ऑफ कैप्रीकॉर्न लाइन होती है. भारत में ट्रॉपिक ऑफ कैंसर 8 राज्यों से होकर गुजरती है. ये हैं- गुजरात (जसदण), राजस्थान (कालिंजर), मध्य प्रदेश (शाजापुर), छत्तीसगढ़ (सोनहत), झारखंड (लोहरदगा), पश्चिम बंगाल (कृष्णानगर), त्रिपुरा (उदयपुर) और मिजोरम (चंफाई).

इक्वेटर पर इतनी गर्मी क्यों नहीं?

चूंकि इक्वेटर(भूमध्य रेखा) को पूरे साल में सबसे ज्यादा सूरज की रोशनी मिलती है, इसलिए यह मानना आम है कि इक्वेटर के इलाके सबसे गर्म होते होंगे. लेकिन ऐसा नहीं है. धरती पर इक्वेटर से ज्यादा ट्रॉपिक (ट्रॉपिक ऑफ कैंसर और ट्रॉपिक ऑफ कैप्रीकॉर्न) पर गर्मी पड़ती है. सहारा हो या थार रेगिस्तान, ये इक्वेटर पर नहीं बल्कि कर्क रेखा के आसपास मौजूद हैं.

दरअसल, इक्वेटर पर सूरज की रोशनी का एक बड़ा हिस्सा क्षेत्र के वास्तविक तापमान को बढ़ाने के बजाय समुद्र और बाकी जल निकायों से पानी को इवैपोरेट करने में खप जाता है. इस वजह से इक्वेटर के महासागरों के ऊपर नम और गर्म हवा बनती है, जो फिर ऊपर उठने लगती है और बादलों की शक्ल ले लेती है. यही वजह है कि इन इलाकों में भारी बारिश देखने को मिलती है.

कर्क रेखा पर इतनी गर्मी क्यों है?

इक्वेटर की गर्म हवा अपनी लगभग पूरी नमी को बादलों में छोड़कर ऊपर की ओर पोल की तरफ बढ़ती जाती है. लेकिन इस गर्म हवा, जो अब सूख भी गई है, को पोल पर जाने से Coriolis नाम की एक फोर्स रोक देती है. नतीजतन, वो उल्टा लौटकर ट्रॉपिक के सतह पर आ जाती है.

हवा जब ऊंचाई से नीचे आती है, तो उसमें दबाव बनता है जिससे उसका तापमान बढ़ जाता है. यह ही सिद्धांत पोल से ट्रॉपिक पर आने वाली हवा में लागू होता है. चूंकि वो पहले से ही गर्म होती है, इसलिए ट्रॉपिक ऑफ कैंसर तक पहुंचते-पहुंचते वो हवा और ज्यादा गर्म हो जाती है. एक आंकड़े के मुताबिक, जब नम हवा 1 किलोमीटर नीचे उतरती है तो वह 6 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो जाती है, लेकिन सूखी होने पर वह 10 डिग्री सेल्सियस गर्म हो जाती है.

इक्वेटर और ट्रॉपिक के तापमान में कितना फर्क होता है?

अब ये तो समझ आ गया कि इक्वेटर की तुलना में ट्रॉपिक गर्म होता है. लेकिन इनके तापमान में कितना फर्क होता है. इसे एक उदाहरण से बेहतर समझ सकते हैं. अगर इक्वेटर पर हवा का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस है, तो जब तक यह आसमान में 10 किलोमीटर ऊपर उठेगी, पोल की ओर यात्रा करेगी और अंततः ट्रॉपिक में उतरेगी, तब तक इसी हवा का तापमान लगभग 12 डिग्री बढ़ जाएगा. यानी हवा का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से 42 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाएगा.

Leave A Reply

Your email address will not be published.

अरुण कुमार सोनी अध्यक्ष लायंस क्लब विदिशा सम्मानित     |     TODAY :: राशिफल शनिवार 23 नवम्बर 2024     |     नहरों में पानी छोड़कर फसलें बर्बाद करने का मामला पूर्व विधायक ने कहा किसानों को दें मुआवजा     |     जिले में नरवाई में आग लगाने पर धारा 144 के तहत प्रतिबंध     |     विज्ञान, गणित प्रदर्शनी का आयोजन      |     ग्राम जमुनिया में निशुल्क फार्मेसी शिविर का आयोजन      |     लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी सचिव श्री पी.नरहरि ने ग्राम माखनी तथा रातातलाई में पेयजल योजना का किया निरीक्षण     |     थाना नटेरन पुलिस ने आयोजित किया गया जनचेतना,जनसंवाद शिविर     |     संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को पाने के लिए चतुर्थ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का चित्रकूट में शुभारंभ     |     श्यामपुर पुलिस द्वारा 02 चोरियों का खुलासा कर 04 आरोपियो भी किया गिरफ्तार     |    

Don`t copy text!
पत्रकार बंधु भारत के किसी भी क्षेत्र से जुड़ने के लिए इस नम्बर पर सम्पर्क करें- 9425036811